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किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया | शाही शायरी
kis kis tarah se mujhko na ruswa kiya gaya

ग़ज़ल

किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया

शहरयार

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किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
ग़ैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया

निकला था मैं सदा-ए-जरस की तलाश में
धोके से इस सुकूत के सहरा में आ गया

क्यूँ आज उस का ज़िक्र मुझे ख़ुश न कर सका
क्यूँ आज उस का नाम मिरा दिल दुखा गया

मैं जिस्म के हिसार में महसूर हूँ अभी
वो रूह की हदों से भी आगे चला गया

इस हादसे को सुन के करेगा यक़ीं कोई
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया