कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
लेकिन वो फ़साना जो मिरे दिल पे रक़म है
शहरयार
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कहने को तो हर बात कही तेरे मुक़ाबिल
लेकिन वो फ़साना जो मिरे दिल पे रक़म है
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कौन सी बात है जो उस में नहीं
उस को देखे मिरी नज़र से कोई
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ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है
कि सरफ़राज़ यहाँ फिर हवा को होना है
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ख़जिल चराग़ों से अहल-ए-वफ़ा को होना है
कि सरफ़राज़ यहाँ फिर हवा को होना है
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किस किस तरह से मुझ को न रुस्वा किया गया
ग़ैरों का नाम मेरे लहू से लिखा गया
शहरयार
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कितनी तब्दील हुइ किस लिए तब्दील हुइ
जानना चाहो तो इन आँखों से दुनिया देखो
शहरयार
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