कुछ तो हो रात की सरहद में उतरने की सज़ा
गर्म सूरज को समुंदर में डुबोया जाए
शाहिद कबीर
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मय-ख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
आना जाना तेरा भी है मेरा भी
शाहिद कबीर
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पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
तक़दीर को अपनी रो रहा हूँ
शाहिद कबीर
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पाया नहीं वो जो खो रहा हूँ
तक़दीर को अपनी रो रहा हूँ
शाहिद कबीर
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शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
वो अफ़्साना तेरा भी है मेरा भी
शाहिद कबीर
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तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया
शाहिद कबीर
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तबाह कर गई पक्के मकान की ख़्वाहिश
मैं अपने गाँव के कच्चे मकान से भी गया
शाहिद कबीर
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