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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

वो एक तू कि तिरे ग़म में इक जहाँ रोए
वो एक मैं कि मिरा कोई रोने वाला नहीं

शहबाज़ ख़्वाजा




वो एक तू कि तिरे ग़म में इक जहाँ रोए
वो एक मैं कि मिरा कोई रोने वाला नहीं

शहबाज़ ख़्वाजा




यूँ तो मुमकिन नहीं दुश्मन मिरे सर पर पहुँचे
पहरे-दारों में कोई आँख झपक जाता है

शहबाज़ ख़्वाजा




दिए हैं ज़िंदगी ने ज़ख़्म ऐसे
कि जिन का वक़्त भी मरहम नहीं है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी




दिए हैं ज़िंदगी ने ज़ख़्म ऐसे
कि जिन का वक़्त भी मरहम नहीं है

शाहीन ग़ाज़ीपुरी




बस्ती में अब कोई नहीं
फैल गई वीरानी क्यूँ

शाहिद अज़ीज़




दूर तक फ़ज़ाओं में
ये कशीदगी क्यूँ है

शाहिद अज़ीज़