वो एक तू कि तिरे ग़म में इक जहाँ रोए
वो एक मैं कि मिरा कोई रोने वाला नहीं
शहबाज़ ख़्वाजा
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वो एक तू कि तिरे ग़म में इक जहाँ रोए
वो एक मैं कि मिरा कोई रोने वाला नहीं
शहबाज़ ख़्वाजा
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यूँ तो मुमकिन नहीं दुश्मन मिरे सर पर पहुँचे
पहरे-दारों में कोई आँख झपक जाता है
शहबाज़ ख़्वाजा
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दिए हैं ज़िंदगी ने ज़ख़्म ऐसे
कि जिन का वक़्त भी मरहम नहीं है
शाहीन ग़ाज़ीपुरी
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दिए हैं ज़िंदगी ने ज़ख़्म ऐसे
कि जिन का वक़्त भी मरहम नहीं है
शाहीन ग़ाज़ीपुरी
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बस्ती में अब कोई नहीं
फैल गई वीरानी क्यूँ
शाहिद अज़ीज़
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दूर तक फ़ज़ाओं में
ये कशीदगी क्यूँ है
शाहिद अज़ीज़
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