ये निगल जाएगी इक दिन तिरी चौड़ाई चर्ख़
गर कभू तुझ से ज़मीं हम ने भी नपवाई चर्ख़
शाह नसीर
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ख़ून ये जाता रगों से फूट कर
रो लिए तो दिल ज़रा हल्का हुआ
शहाब अशरफ़
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चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है
शहाब जाफ़री
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है
शहाब जाफ़री
हालात 'शहाब' आँख उठाने नहीं देते
बच्चों को मगर ईद मनाने की पड़ी है
शहाब सफ़दर
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इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है
कि रास्ता यहाँ दरिया बनाने वाला है
शहबाज़ ख़्वाजा
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इक ऐसा वक़्त भी सहरा में आने वाला है
कि रास्ता यहाँ दरिया बनाने वाला है
शहबाज़ ख़्वाजा
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