ग़ज़ल इस बहर में क्या तुम ने लिखी है ये 'नसीर'
जिस से है रंग-ए-गुल-ए-मअनी-ए-मुश्किल टपका
शाह नसीर
ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
किया है इश्क़ ने यूसुफ़ ग़ुलाम आशिक़ का
शाह नसीर
हम दिखाएँगे तमाशा तुझ को फिर सर्व-ए-चमन
दिल से गर सरज़द हमारे नाला-ए-मौज़ूँ हुआ
शाह नसीर
हम हैं और मजनूँ अज़ल से ख़ाना-पर्वर्द-ए-जुनूँ
उस ने की सहरा-नवर्दी हम ने गलियाँ देखियाँ
शाह नसीर
हम वो फ़लक हैं अहल-ए-तवक्कुल कि मिस्ल-ए-माह
रखते नहीं हैं नान-ए-शबीना बरा-ए-सुब्ह
शाह नसीर
हवा पर है ये बुनियाद-ए-मुसाफ़िर ख़ाना-ए-हस्ती
न ठहरा है कोई याँ ऐ दिल-ए-महज़ूँ न ठहरेगा
शाह नसीर
हो गुफ़्तुगू हमारी और अब उस की क्यूँकि आह
उस के दहाँ नहीं तो हमारी ज़बाँ नहीं
शाह नसीर