EN اردو
लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का | शाही शायरी
liya na hath se jis ne salam aashiq ka

ग़ज़ल

लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का

शाह नसीर

;

लिया न हाथ से जिस ने सलाम आशिक़ का
वो कान धर के सुने क्या पयाम आशिक़ का

क़ुसूर-शेख़ है फ़िरदौस ओ हूर की ख़्वाहिश
तिरी गली में है प्यारे मक़ाम आशिक़ का

ग़ुरूर-ए-हुस्न न कर जज़्बा-ए-ज़ुलेख़ा देख
किया है इश्क़ ने यूसुफ़ ग़ुलाम आशिक़ का

तिरे ही नाम की सिमरण है मुझ को और तस्बीह
तू ही है विर्द हर इक सुब्ह-ओ-शाम आशिक़ का

वफ़ूर-ए-इश्क़ को आशिक़ ही जानता है 'नसीर'
हर इक समझ नहीं सकता कलाम आशिक़ का