की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
चार उंसुर के सिवा और है इंसान में क्या
शाह नसीर
की है उस्ताद-ए-अज़ल ने ये रुबाई मौज़ूँ
चार उंसुर से खुले मअनी-ए-पिन्हाँ हम को
शाह नसीर
कोई ये शैख़ से पूछे कि बंद कर आँखें
मुराक़बे में बता सुब्ह-ओ-शाम क्या देखा
शाह नसीर
क्या दिखाता है फ़लक-ए-गर्म तू नान-ए-ख़ुर्शीद
खाना खाते हैं सदा अहल-ए-तवक्कुल ठंडा
शाह नसीर
क्यूँ मय के पीने से करूँ इंकार नासेहा
ज़ाहिद नहीं वली नहीं कुछ पारसा नहीं
शाह नसीर
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
भँवर काले के दफ़ बाजे है मौज ऐ यार पानी में
शाह नसीर
लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
बहम हर मौज से चलने लगी तलवार पानी में
शाह नसीर