जब चली अपनों की गर्दन पर चली
चूम लूँ मुँह आप की तलवार का
शाद आरफ़ी
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जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से
कोई बयान करे मेरी दास्ताँ होगी
शाद आरफ़ी
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जहान-ए-दर्द में इंसानियत के नाते से
कोई बयान करे मेरी दास्ताँ होगी
शाद आरफ़ी
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कहीं फ़ितरत बदल सकती है नामों के बदलने से
जनाब-ए-शैख़ को मैं बरहमन कह दूँ तो क्या होगा
शाद आरफ़ी
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कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए
शाद आरफ़ी
कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी
कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए
शाद आरफ़ी
नहीं है इंसानियत के बारे में आज भी ज़ेहन साफ़ जिन का
वो कह रहे हैं कि जिस से नेकी करोगे उस से बदी मिलेगी
शाद आरफ़ी
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