लज़्ज़त-ए-वस्ल से भी बढ़ के मज़ा आएगा
अपनी तन्हाई से दिल अपना लगा कर देखो
शाद अमृतसरी
लज़्ज़त-ए-वस्ल से भी बढ़ के मज़ा आएगा
अपनी तन्हाई से दिल अपना लगा कर देखो
शाद अमृतसरी
बड़ी तलाश से मिलती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
क़ज़ा की तरह पता पूछती नहीं आती
शानुल हक़ हक़्क़ी
लोग तुम से भी सितम-पेशा कहाँ होते हैं
जो कहीं का न रखें और फिर अपना न कहें
शानुल हक़ हक़्क़ी
लोग तुम से भी सितम-पेशा कहाँ होते हैं
जो कहीं का न रखें और फिर अपना न कहें
शानुल हक़ हक़्क़ी
तुम से उल्फ़त के तक़ाज़े न निबाहे जाते
वर्ना हम को भी तमन्ना थी कि चाहे जाते
शानुल हक़ हक़्क़ी
कितने दिल थे जो हो गए पत्थर
कितने पत्थर थे जो सनम ठहरे
शायर लखनवी