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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ग़रज़ कुफ़्र से कुछ न दीं से है मतलब
तमाशा-ए-दैर-ओ-हरम देखते हैं

मोहम्मद रफ़ी सौदा




गिला लिखूँ मैं अगर तेरी बेवफ़ाई का
लहू में ग़र्क़ सफ़ीना हो आश्नाई का

मोहम्मद रफ़ी सौदा




गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन कुछ तो इधर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा




गुल फेंके है औरों की तरफ़ बल्कि समर भी
ऐ ख़ाना-बर-अंदाज़-ए-चमन कुछ तो इधर भी

मोहम्मद रफ़ी सौदा




है मुद्दतों से ख़ाना-ए-ज़ंजीर बे-सदा
मालूम ही नहीं कि दिवाने किधर गए

मोहम्मद रफ़ी सौदा




हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
समझा के तुम उसे भी तो यक-बार कुछ कहो

मोहम्मद रफ़ी सौदा




हर आन आ मुझी को सताते हो नासेहो
समझा के तुम उसे भी तो यक-बार कुछ कहो

मोहम्मद रफ़ी सौदा