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शिकोह-ए-आब में गुम थे जिहत-निशाँ मेरे | शाही शायरी
shikoh-e-ab mein gum the jihat-nishan mere

ग़ज़ल

शिकोह-ए-आब में गुम थे जिहत-निशाँ मेरे

सत्तार सय्यद

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शिकोह-ए-आब में गुम थे जिहत-निशाँ मेरे
हवा ने रख दिए तह कर के बादबाँ मेरे

सहर को साथ उड़ा ले गई सबा जैसे
ये किस ने कर दिए रस्ते धुआँ धुआँ मेरे

तिरे इशारा-ए-अबरू पे रुत बदलती है
बहार है न तसल्लुत में है ख़िज़ाँ मेरे

उतरने वाले सफ़ीनों में छेद करते गए
डुबो गए मुझे साहिल पे मेहरबाँ मेरे

खिला शगूफ़ा-ए-ग़म शाख़-ए-उम्र पर 'सय्यद'
महक रहे हैं सर-ए-हर्फ़ जिस्म-ओ-जाँ मेरे