शब-ओ-रोज़ नख़्ल-ए-वजूद को नया एक बर्ग-ए-अना दिया
हमें इंहिराफ़ का हौसला भी दिया तो मिस्ल-ए-दुआ दिया
अहमद शनास
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वो मेरे अलावा मुझे चाहता है
बड़ी मुख़्तलिफ़ है कहानी की सूरत
अहमद शनास
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इस क़दर महफ़ूज़ रहता है कि वो
राम का अवतार लगता है मुझे
अहमद सोज़
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कितनी ख़ुश-हाल है सारी दुनिया
कितना वीरान है ये घर देखो
अहमद वहीद अख़्तर
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अपनी ही ज़ात के सहरा में आज
लोग चुप-चाप जला करते हैं
अहमद वसी
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बरताव इस तरह का रहे हर किसी के साथ
ख़ुद को लिए दिए भी रहो दोस्ती के साथ
अहमद वसी
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इन से ज़िंदा है ये एहसास कि ज़िंदा हूँ मैं
शहर में कुछ मिरे दुश्मन हैं बहुत अच्छा है
अहमद वसी
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