झूट बोलों तो गुनहगार बनों
साफ़ कह दूँ तो सज़ा-वार बनों
अहमद वसी
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जो चेहरे दूर से लगते हैं आदमी जैसे
वही क़रीब से पत्थर दिखाई देते हैं
अहमद वसी
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जो कहता था ज़मीं को मैं सितारों से सजा दूँगा
वही बस्ती की तह में रख गया चिंगारियाँ अपनी
अहमद वसी
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जुदाई क्यूँ दिलों को और भी नज़दीक लाती है
बिछड़ कर क्यूँ ज़ियादा प्यार का एहसास होता है
अहमद वसी
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लोग हैरत से मुझे देख रहे हैं ऐसे
मेरे चेहरे पे कोई नाम लिखा हो जैसे
अहमद वसी
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में साँस साँस हूँ घायल ये कौन मानेगा
बदन पे चोट का कोई निशान भी तो नहीं
अहमद वसी
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मुद्दत के बा'द आइना कल सामने पड़ा
देखी जो अपनी शक्ल तो चेहरा उतर गया
अहमद वसी
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