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हर गली कूचे में लश्कर देखो | शाही शायरी
har gali kuche mein lashkar dekho

ग़ज़ल

हर गली कूचे में लश्कर देखो

अहमद वहीद अख़्तर

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हर गली कूचे में लश्कर देखो
दोस्तो शहर का मंज़र देखो

हम न कहते थे कि घर जाओगे
किस जगह पहुँचे हो आख़िर देखो

कितनी ख़ुश-हाल है सारी दुनिया
कितना वीरान है ये घर देखो

बंद कमरों में मुक़फ़्फ़ल लोगो!
खिड़कियाँ खोल के बाहर देखो

किस तरह ज़िंदा हैं ख़ुश हैं कितने
जाने वालो! कभी आ कर देखो