इल्म भी आज़ार लगता है मुझे
आदमी अख़बार लगता है मुझे
चीख़ती सड़कें धुआँ पेट्रोल बू
शहर तो बीमार लगता है मुझे
इस क़दर महफ़ूज़ रहता है कि वो
राम का अवतार लगता है मुझे
रोज़ नज़्में कहना छपवाना कहीं
एक कारोबार लगता है मुझे
शाएरी अच्छी बुरी मालूम है
बाक़ी सब बेकार लगता है मुझे
ग़ज़ल
इल्म भी आज़ार लगता है मुझे
अहमद सोज़