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इल्म भी आज़ार लगता है मुझे | शाही शायरी
ilm bhi aazar lagta hai mujhe

ग़ज़ल

इल्म भी आज़ार लगता है मुझे

अहमद सोज़

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इल्म भी आज़ार लगता है मुझे
आदमी अख़बार लगता है मुझे

चीख़ती सड़कें धुआँ पेट्रोल बू
शहर तो बीमार लगता है मुझे

इस क़दर महफ़ूज़ रहता है कि वो
राम का अवतार लगता है मुझे

रोज़ नज़्में कहना छपवाना कहीं
एक कारोबार लगता है मुझे

शाएरी अच्छी बुरी मालूम है
बाक़ी सब बेकार लगता है मुझे