ये नुक्ता इक क़िस्सा-गो ने मुझ को समझाया
हर किरदार के अंदर एक कहानी होती है
अफ़ज़ल ख़ान
ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
मिरे मकान पे लिक्खा है घर बराए-फ़रोख़्त
अफ़ज़ल ख़ान
अपने माहौल से कुछ यूँ भी तो घबराए न थे
संग लिपटे हुए फूलों में नज़र आए न थे
अफ़ज़ल मिनहास
अपनी बुलंदियों से गिरूँ भी तो किस तरह
फैली हुई फ़ज़ाओं में बिखरा हुआ हूँ मैं
अफ़ज़ल मिनहास
बिखरते जिस्म ले कर तुंद तूफ़ानों में बैठे हैं
कोई ज़र्रे की सूरत है कोई टीले की सूरत है
अफ़ज़ल मिनहास
बिखरे हुए हैं दिल में मिरी ख़्वाहिशों के रंग
अब मैं भी इक सजा हुआ बाज़ार हो गया
अफ़ज़ल मिनहास
चाँद में कैसे नज़र आए तिरी सूरत मुझे
आँधियों से आसमाँ का रंग मैला हो गया
अफ़ज़ल मिनहास