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तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त | शाही शायरी
to phir wo ishq ye naqd-o-nazar barae-faroKHt

ग़ज़ल

तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त

अफ़ज़ल ख़ान

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तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
सुख़न बराए-हुनर है हुनर बराए-फ़रोख़्त

अयाँ किया है तिरा राज़ फ़ी-सबीलिल्लाह
ख़बर न थी कि है ये भी ख़बर बराए-फ़रोख़्त

मैं क़ाफ़िले से बिछड़ कर भला कहाँ जाऊँ
सजाए बैठा हूँ ज़ाद-ए-सफ़र बराए-फ़रोख़्त

परिंदे लड़ ही पड़े जाएदाद पर आख़िर
शजर पे लिक्खा हुआ है शजर बराए-फ़रोख़्त

मैं पहले कूफ़ा गया इस के ब'अद मिस्र गया
इधर बराए-शहादत उधर बराए-फ़रोख़्त

ज़रा ये दूसरा मिस्रा दुरुस्त फ़रमाएँ
मिरे मकान पे लिक्खा है घर बराए-फ़रोख़्त