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अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ | शाही शायरी
ajab talash-e-musalsal ka iKHtitam hua

ग़ज़ल

अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ

आनिस मुईन

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अजब तलाश-ए-मुसलसल का इख़्तिताम हुआ
हुसूल-ए-रिज़्क़ हुआ भी तो ज़ेर-ए-दाम हुआ

था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
न तुम ही लौट के आए न वक़्त-ए-शाम हुआ

हर एक शहर का मेआ'र मुख़्तलिफ़ देखा
कहीं पे सर कहीं पगड़ी का एहतिराम हुआ

ज़रा सी उम्र अदावत की लम्बी फ़ेहरिस्तें
अजीब क़र्ज़ विरासत में मेरे नाम हुआ

न थी ज़मीन में वुसअ'त मिरी नज़र जैसी
बदन थका भी नहीं और सफ़र तमाम हुआ

हम अपने साथ लिए फिर रहे हैं पछतावा
ख़याल लौट के जाने का गाम गाम हुआ