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बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए | शाही शायरी
baKHshe phir us nigah ne arman nae nae

ग़ज़ल

बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए

अदीब सहारनपुरी

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बख़्शे फिर उस निगाह ने अरमाँ नए नए
महसूस हो रहे हैं दिल ओ जाँ नए नए

यूँ क़ैद-ए-ज़िंदगी ने रखा मुज़्तरिब हमें
जैसे हुए हों दाख़िल-ए-ज़िंदाँ नए नए

किस किस से इस अमानत-ए-दीं को बचाइए
मिलते हैं रोज़ दुश्मन-ए-ईमाँ नए नए

राहत की जुस्तुजू में ख़ुशी की तलाश में
ग़म पालती है उम्र-ए-गुरेज़ाँ नए नए

मस्जिद में और ज़िक्र बुतों का जनाब-ए-शैख़
शायद हुए हैं आप मुसलमाँ नए नए

दम भर दम-ए-अजल को न हासिल हुआ फ़राग़
होते रहे चराग़ फ़रोज़ाँ नए नए

ख़ाना-ख़राब हम से जहाँ में कहाँ 'अदीब'
आबाद कर रहे हैं बयाबाँ नए नए