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शुजा ख़ावर शायरी | शाही शायरी

शुजा ख़ावर शेर

34 शेर

इसी पर ख़ुश हैं कि इक दूसरे के साथ रहते हैं
अभी तन्हाई का मतलब नहीं समझे हैं घर वाले

शुजा ख़ावर




आप इधर आए उधर दीन और ईमान गए
ईद का चाँद नज़र आया तो रमज़ान गए

शुजा ख़ावर




हम सूफ़ियों का दोनों तरफ़ से ज़ियाँ हुआ
इरफ़ान-ए-ज़ात भी न हुआ रात भी गई

शुजा ख़ावर




घर में बेचैनी हो तो अगले सफ़र की सोचना
फिर सफ़र नाकाम हो जाए तो घर की सोचना

शुजा ख़ावर




दो चार नहीं सैंकड़ों शेर उस पे कहे हैं
इस पर भी वो समझे न तो क़दमों पे झुकें क्या

शुजा ख़ावर




दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ
बस इसी बात से दुश्मन मुझे पहचान गए

शुजा ख़ावर




दिल की बातें दूसरों से मत कहो लुट जाओगे
आज कल इज़हार के धंधे में है घाटा बहुत

शुजा ख़ावर




दर्द जाएगा तो कुछ कुछ जाएगा पर देखना
चैन जब जाएगा तो सारा का सारा जाएगा

शुजा ख़ावर




चारागरी की बात किसी और से करो
अब हो गए हैं यारो पुराने मरीज़ हम

talk not of cure to me my friends,nor of therapy
I am a chronic patient now, well past remedy

शुजा ख़ावर