शुमार मैं न करूँगा फ़िराक़ के शब ओ रोज़
वहीं से बात चलेगी जहाँ से टूटी थी
शहज़ाद अहमद
सीने में बे-क़रार हैं मुर्दा मोहब्बतें
मुमकिन है ये चराग़ कभी ख़ुद ही जल पड़े
शहज़ाद अहमद
सितारे इस क़दर देखे कि आँखें बुझ गईं अपनी
मोहब्बत इस क़दर कर ली मोहब्बत छोड़ दी हम ने
शहज़ाद अहमद
वो मुझे प्यार से देखे भी तो फिर क्या होगा
मुझ में इतनी भी सकत कब है कि धोका खाऊँ
शहज़ाद अहमद
वो कोई और है जिस ने तुझे चाहा होगा
शहर में लोग बहुत से मिरी सूरत के भी हैं
शहज़ाद अहमद
वो मिरी सुब्हों का तारा वो मिरी रातों का चाँद
मेरे दिल की रौशनी तो था मगर मेरा न था
शहज़ाद अहमद
वो ख़ुश-नसीब थे जिन्हें अपनी ख़बर न थी
याँ जब भी आँख खोलिए अख़बार देखिए
शहज़ाद अहमद
यार होते तो मुझे मुँह पे बुरा कह देते
बज़्म में मेरा गिला सब ने किया मेरे बाद
शहज़ाद अहमद
ये अलग बात ज़बाँ साथ न दे पाएगी
दिल का जो हाल है कहना तो पड़ेगा तुझ से
शहज़ाद अहमद