तीरगी ही तीरगी हद्द-ए-नज़र तक तीरगी
काश मैं ख़ुद ही सुलग उठ्ठूँ अँधेरी रात में
शहज़ाद अहमद
तिरा मैं क्या करूँ ऐ दिल तुझे कुछ भी नहीं आता
बिछड़ना भी उसे आता है और मिलना भी आता है
शहज़ाद अहमद
तिरी तलाश तो क्या तेरी आस भी न रहे
अजब नहीं कि किसी दिन ये प्यास भी न रहे
शहज़ाद अहमद
उम्र भर अपने गिरेबाँ से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साए से डराता क्या है
शहज़ाद अहमद
उड़ते हुए आते हैं अभी संग-ए-तमन्ना
और कार-गह-ए-दिल की वही शीशागरी है
शहज़ाद अहमद
उदास छोड़ गए कश्तियों को साहिल पर
गिला करें भी तो क्या पार उतरने वालों से
शहज़ाद अहमद
तू कुछ भी हो कब तक तुझे हम याद करेंगे
ता-हश्र तो ये दिल भी धड़कता न रहेगा
शहज़ाद अहमद
उम्र भर सुनता रहूँ अपनी सदा की बाज़गश्त
या तिरी आवाज़ भी आएगी मेरे कान में
शहज़ाद अहमद
उम्र जितनी भी कटी उस के भरोसे पे कटी
और अब सोचता हूँ उस का भरोसा क्या था
शहज़ाद अहमद