ज़मीन नाव मिरी बादबाँ मिरे अफ़्लाक
मैं इन को छोड़ के साहिल पे कब उतरता हूँ
शहज़ाद अहमद
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ज़रा लबों के तबस्सुम से बज़्म गर्माएँ
हमें तो आप की आँखों की चुप ने मार दिया
शहज़ाद अहमद
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ज़रा सा ग़म हुआ और रो दिए हम
बड़ी नाज़ुक तबीअत हो गई है
शहज़ाद अहमद
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