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पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने | शाही शायरी
purane doston se ab murawwat chhoD di humne

ग़ज़ल

पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने

शहज़ाद अहमद

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पुराने दोस्तों से अब मुरव्वत छोड़ दी हम ने
मुअज़्ज़ज़ हो गए हम भी शराफ़त छोड़ दी हम ने

मयस्सर आ चुकी है सर-बुलंदी मुड़ के क्यूँ देखें
इमामत मिल गई हम को तो उम्मत छोड़ दी हम ने

किसे मालूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों का
जवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने

ये मुल्क अपना है और इस मुल्क की सरकार अपनी है
मिली है नौकरी जब से बग़ावत छोड़ दी हम ने

है उतना वाक़िआ उस से न मिलने की क़सम खा ली
तअस्सुफ़ इस क़दर गोया वज़ारत छोड़ दी हम ने

करें क्या ये बला अपने लिए ख़ुद मुंतख़ब की है
गिला बाक़ी रहा लेकिन शिकायत छोड़ दी हम ने

सितारे इस क़दर देखे कि आँखें बुझ गईं अपनी
मोहब्बत इस क़दर कर ली मोहब्बत छोड़ दी हम ने

जो सोचा है अज़ीज़ों की समझ में आ नहीं सकता
शरारत अब के ये की है शरारत छोड़ दी हम ने

उलझ पड़ते अगर तो हम में तुम में फ़र्क़ क्या रहता
यही दीवार बाक़ी थी सलामत छोड़ दी हम ने

गुनहगारों में शामिल मुद्दई भी और मुल्ज़िम भी
तिरा इंसाफ़ देखा और अदालत छोड़ दी हम ने