EN اردو
क़ाएम चाँदपुरी शायरी | शाही शायरी

क़ाएम चाँदपुरी शेर

88 शेर

शैख़-जी क्यूँकि मआसी से बचें हम कि गुनाह
इर्स है अपनी हम आदम के अगर पोते हैं

क़ाएम चाँदपुरी




शैख़-जी आया न मस्जिद में वो काफ़िर वर्ना हम
पूछते तुम से कि अब वो पारसाई क्या हुई

क़ाएम चाँदपुरी




शामत है क्या कि शैख़ से कोई मिले कि वाँ
रोज़ा वबाल-ए-जाँ है सदा या नमाज़ है

क़ाएम चाँदपुरी




सैर उस कूचे की करता हूँ कि जिब्रील जहाँ
जा के बोला कि बस अब आगे मैं जल जाऊँगा

क़ाएम चाँदपुरी




संग को आब करें पल में हमारी बातें
लेकिन अफ़्सोस यही है कि कहाँ सुनते हो

क़ाएम चाँदपुरी




रौनक़-ए-बादा-परस्ती थी हमीं तक जब से
हम ने की तौबा कहीं नाम-ए-ख़राबात नहीं

क़ाएम चाँदपुरी




रस्म इस घर की नहीं दाद किसू की दे कोई
शोर-ओ-ग़ौग़ा न कर ऐ मुर्ग़-ए-गिरफ़्तार अबस

क़ाएम चाँदपुरी




क़िस्सा-ए-बरहना-पाई को मिरे ऐ मजनूँ
ख़ार से पूछ कि सब नोक-ए-ज़बाँ है उस को

क़ाएम चाँदपुरी




दर्द-ए-दिल कुछ कहा नहीं जाता
आह चुप भी रहा नहीं जाता

क़ाएम चाँदपुरी