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क़ाएम चाँदपुरी शायरी | शाही शायरी

क़ाएम चाँदपुरी शेर

88 शेर

की वफ़ा किस से भला फ़ाहिशा-ए-दुनिया ने
है तुझे शौक़ जो इस क़हबा की दामादी का

क़ाएम चाँदपुरी




ख़स नमत साथ मौज के लग ले
बहते बहते कहीं तो जाइएगा

क़ाएम चाँदपुरी




कर न जुरअत तू ऐ तबीब कि ये
दिल का धड़का है इख़्तिलाज नहीं

क़ाएम चाँदपुरी




कहता है आइना कि है तुझ सा ही एक और
बावर नहीं तो ला मैं तिरे रू-ब-रू करूँ

क़ाएम चाँदपुरी




कब मैं कहता हूँ कि तेरा मैं गुनहगार न था
लेकिन इतनी तो उक़ूबत का सज़ा-वार न था

I have sinned against you, I certainly agree
but was I still deserving of such cruelty

क़ाएम चाँदपुरी




आ ऐ 'असर' मुलाज़िम-ए-सरकार-ए-गिर्या हो
याँ जुज़ गुहर ख़ज़ाने में तनख़्वाह ही नहीं

क़ाएम चाँदपुरी




जिस मुसल्ले पे छिड़किए न शराब
अपने आईन में वो पाक नहीं

क़ाएम चाँदपुरी




जिस चश्म को वो मेरा ख़ुश-चश्म नज़र आया
नर्गिस का उसे जल्वा इक पश्म नज़र आया

क़ाएम चाँदपुरी




इलाही वाक़ई इतना ही बद है फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर
पर इस मज़े को समझता जो तू बशर होता

क़ाएम चाँदपुरी