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मैं न वो हूँ कि तनिक ग़ुस्से में टल जाऊँगा | शाही शायरी
main na wo hun ki tanik ghusse mein Tal jaunga

ग़ज़ल

मैं न वो हूँ कि तनिक ग़ुस्से में टल जाऊँगा

क़ाएम चाँदपुरी

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मैं न वो हूँ कि तनिक ग़ुस्से में टल जाऊँगा
हँस के तुम बात करोगे मैं बहल जाऊँगा

हम-नशीं कीजियो तक़रीब तो शब-बाशी की
आज कर नश्शा का हीला मैं मचल जाऊँगा

दिल मिरे ज़ोफ़ पे क्या रहम तू खाता है कि मैं
जान से अब की बचा हूँ तो सँभल जाऊँगा

सैर उस कूचे की करता हूँ कि जिब्रील जहाँ
जा के बोला कि बस अब आगे मैं जल जाऊँगा

तंग हूँ मैं भी अब इस जीने से ऐ जी न रुका
जा निकल जा जो तू कहता है निकल जाऊँगा

शोर-ए-महशर से है पर्वा मुझे क्या ऐ वाइज़
जब कि हम-राह लिए दिल सा ख़लल जाऊँगा

शोख़ी से पहुँचिए जूँ हिन्द में तूती 'क़ाएम'
आगे 'सौदा' के मैं ले कर ये ग़ज़ल जाऊँगा