ईराद कर न पढ़ के मिरा ख़त कि ये तमाम
बे-रब्तियाँ हैं समरा-ए-हंगाम-ए-इश्तियाक़
क़ाएम चाँदपुरी
होना था ज़िंदगी ही में मुँह शैख़ का सियाह
इस उम्र में है वर्ना मज़ा क्या ख़िज़ाब का
क़ाएम चाँदपुरी
हर उज़्व है दिल-फ़रेब तेरा
कहिए किसे कौन सा है बेहतर
क़ाएम चाँदपुरी
हर तरफ़ ज़र्फ़-ए-वज़ू भरते हैं ज़ाहिद हुई सुब्ह
साथ उठ हम भी सुराही में मय-ए-नाब करें
क़ाएम चाँदपुरी
हर दम आने से मैं भी हूँ नादिम
क्या करूँ पर रहा नहीं जाता
क़ाएम चाँदपुरी
हम दिवानों को बस है पोशिश से
दामन-ए-दश्त ओ चादर-ए-महताब
क़ाएम चाँदपुरी
हाथों से दिल ओ दीदा के आया हूँ निपट तंग
आँखों को रोऊँ या मैं करूँ सरज़निश-ए-दिल
क़ाएम चाँदपुरी