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निज़ाम रामपुरी शायरी | शाही शायरी

निज़ाम रामपुरी शेर

60 शेर

अब क्या मिलें किसी से कहाँ जाएँ हम 'निज़ाम'
हम वो नहीं रहे वो मोहब्बत नहीं रही

निज़ाम रामपुरी




अब तो सब का तिरे कूचे ही में मस्कन ठहरा
यही आबाद है दुनिया में ज़मीं थोड़ी सी

निज़ाम रामपुरी




अब तुम से क्या किसी से शिकायत नहीं मुझे
तुम क्या बदल गए कि ज़माना बदल गया

निज़ाम रामपुरी




अभी तो कहा ही नहीं मैं ने कुछ
अभी तुम जो आँखें चुराने लगे

निज़ाम रामपुरी




अंदाज़ अपना देखते हैं आईने में वो
और ये भी देखते हैं कोई देखता न हो

looking in the mirror she sees her savoir-faire
and also looks to see no one is peeping there

निज़ाम रामपुरी




अपनी अंदाज़ के कह शेर न कह ये तू 'निज़ाम'
कि चुनाँ बैठ गया और चुनीं बैठ गई

निज़ाम रामपुरी




बहर-ए-हस्ती से कूच है दरपेश
याद मंसूबा-ए-हुबाब रहे

निज़ाम रामपुरी




बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ

निज़ाम रामपुरी




बोसा तो उस लब-ए-शीरीं से कहाँ मिलता है
गालियाँ भी मिलीं हम को तो मिलीं थोड़ी सी

निज़ाम रामपुरी