अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
देखा जो मुझ को छोड़ दिए मुस्कुरा के हाथ
she couldn't stretch her limbs, with all her ample grace
on seeing me she smiled and kept, her modesty in place
बे-साख़्ता निगाहें जो आपस में मिल गईं
क्या मुँह पर उस ने रख लिए आँखें चुरा के हाथ
inadvertently, when, our eyes did chance to meet
she looked away from me, and then, covered up her face
ये भी नया सितम है हिना तो लगाएँ ग़ैर
और उस की दाद चाहें वो मुझ को दिखा के हाथ
Tis a novel torture, henna, my rival applies
while she waits for compliments from me- so in my face!!
बे-इख़्तियार हो के जो मैं पाँव पर गिरा
ठोड़ी के नीचे उस ने धरा मुस्कुरा के हाथ
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गर दिल को बस में पाएँ तो नासेह तिरी सुनें
अपनी तो मर्ग-ओ-ज़ीस्त है उस बेवफ़ा के हाथ
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वो ज़ानुओं में सीना छुपाना सिमट के हाए
और फिर सँभालना वो दुपट्टा छुड़ा के हाथ
she doubles up to hide her bosom- such a pity sigh!
then straightens up again to get her scarf back into place
क़ासिद तिरे बयाँ से दिल ऐसा ठहर गया
गोया किसी ने रख दिया सीने पे आ के हाथ
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ऐ दिल कुछ और बात की रग़बत न दे मुझे
सुननी पड़ेंगी सैकड़ों उस को लगा के हाथ
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वो कुछ किसी का कह के सताना सदा मुझे
वो खींच लेना पर्दे से अपना दिखा के हाथ
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देखा जो कुछ रुका मुझे तो किस तपाक से
गर्दन में मेरी डाल दिए आप आ के हाथ
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फिर क्यूँ न चाक हो जो हैं ज़ोर-आज़माइयाँ
बाँधूंगा फिर दुपट्टा से उस बे-ख़ता के हाथ
wherever do I go to if I, from your street depart
with both the worlds forsaken, there is no other place
कूचे से तेरे उट्ठें तो फिर जाएँ हम कहाँ
बैठे हैं याँ तो दोनों जहाँ से उठा के हाथ
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पहचाना फिर तो क्या ही नदामत हुई उन्हें
पंडित समझ के मुझ को और अपना दिखा के हाथ
I do recall her offering to me the glass of wine
holding out her hand this way turning away her face
देना वो उस का साग़र-ए-मय याद है 'निज़ाम'
मुँह फेर कर उधर को इधर को बढ़ा के हाथ
ग़ज़ल
अंगड़ाई भी वो लेने न पाए उठा के हाथ
निज़ाम रामपुरी