वही लोग फिर आने जाने लगे
मिरे पास क्यूँ आप आने लगे
कोई ऐसे से क्या शिकायत करे
बिगड़ कर जो बातें बनाने लगे
ये क्या जज़्ब-ए-दिल खींच लाया उन्हें
मिरे ख़त मुझे फिर के आने लगे
अभी तो कहा ही नहीं मैं ने कुछ
अभी तुम जो आँखें चुराने लगे
हमारे ही आगे गले ग़ैर के
हमारी ही तर्ज़ें उड़ाने लगे
न बन आया जब उन को कोई जवाब
तो मुँह फेर कर मुस्कुराने लगे
ग़ज़ल
वही लोग फिर आने जाने लगे
निज़ाम रामपुरी