मैं न कहता था कि बहकाएँगे तुम को दुश्मन
तुम ने किस वास्ते आना मिरे घर छोड़ दिया
निज़ाम रामपुरी
लिपटा के शब-ए-वस्ल वो उस शोख़ का कहना
कुछ और हवस इस से ज़ियादा तो नहीं है
निज़ाम रामपुरी
क्या किसी से किसी का हाल कहें
नाम भी तो लिया नहीं जाता
निज़ाम रामपुरी
क्या दुआ रोज़-ए-हश्र की माँगें
वहाँ पर भी यही ख़ुदा होगा
निज़ाम रामपुरी
कू-ए-जानाँ में गर अब जाएँ भी तो क्या देखें
कोई रौज़न न रहा बन गई दीवार नई
निज़ाम रामपुरी
किस क़दर हिज्र में बेहोशी है
जागना भी है हमारा सोना
निज़ाम रामपुरी
किस का है इंतिज़ार कहाँ ध्यान है लगा
क्यूँ चौंक चौंक जाते हो आवाज़-ए-पा के साथ
निज़ाम रामपुरी
ख़ुश्बू वो पसीने की तिरी याद न आ जाए
गुल कैसा कभी इत्र भी सूँघा न करेंगे
निज़ाम रामपुरी
कहीं उस बज़्म तक रसाई हो
फिर कोई देखे एहतिमाम मिरा
निज़ाम रामपुरी