हुए नुमूद जो पिस्ताँ तो शर्म खा के कहा
ये क्या बला है जो उठती है मेरे सीने से
निज़ाम रामपुरी
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इक बात लिखी है क्या ही मैं ने
तुझ से तो न नामा-बर कहूँगा
निज़ाम रामपुरी
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इक वो कि रात दिन रहें महफ़िल में उस की हाए
इक हम कि तरसें साया-ए-दीवार के लिए
निज़ाम रामपुरी
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इस क़दर आप का इताब रहे
दिल को मेरे न इज़्तिराब रहे
निज़ाम रामपुरी
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जो जो मज़े किए हैं ज़बाँ से मैं क्या कहूँ
पास अपने आज तक तिरे मुँह का उगाल है
निज़ाम रामपुरी
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जो कि नादाँ है वो क्या जाने तिरी चाहत की क़द्र
ऐ परी दीवाना बनना काम है होशियार का
निज़ाम रामपुरी
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