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निदा फ़ाज़ली शायरी | शाही शायरी

निदा फ़ाज़ली शेर

81 शेर

कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई

निदा फ़ाज़ली




कोशिश भी कर उमीद भी रख रास्ता भी चुन
फिर इस के ब'अद थोड़ा मुक़द्दर तलाश कर

निदा फ़ाज़ली




कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है

निदा फ़ाज़ली




किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

निदा फ़ाज़ली




किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

निदा फ़ाज़ली




ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्त
वो शख़्स था ज़ियादा मगर आदमी था कम

निदा फ़ाज़ली




ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

निदा फ़ाज़ली




ख़तरे के निशानात अभी दूर हैं लेकिन
सैलाब किनारों पे मचलने तो लगे हैं

निदा फ़ाज़ली




कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआनी

निदा फ़ाज़ली