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मुईन अहसन जज़्बी शायरी | शाही शायरी

मुईन अहसन जज़्बी शेर

29 शेर

जो आग लगाई थी तुम ने उस को तो बुझाया अश्कों ने
जो अश्कों ने भड़काई है उस आग को ठंडा कौन करे

मुईन अहसन जज़्बी




जब तुझ को तमन्ना मेरी थी तब मुझ को तमन्ना तेरी थी
अब तुझ को तमन्ना ग़ैर की है तो तेरी तमन्ना कौन करे

मुईन अहसन जज़्बी




जब मोहब्बत का नाम सुनता हूँ
हाए कितना मलाल होता है

when mention of love is there
Aah! I feel such deep despai

मुईन अहसन जज़्बी




जब कश्ती साबित-ओ-सालिम थी साहिल की तमन्ना किस को थी
अब ऐसी शिकस्ता कश्ती पर साहिल की तमन्ना कौन करे

मुईन अहसन जज़्बी




जब कभी किसी गुल पर इक ज़रा निखार आया
कम-निगाह ये समझे मौसम-ए-बहार आया

मुईन अहसन जज़्बी




इक प्यास भरे दिल पर न हुई तासीर तुम्हारी नज़रों की
इक मोम के बे-बस टुकड़े पर ये नाज़ुक ख़ंजर टूट गए

मुईन अहसन जज़्बी




हज़ार बार किया अज़्म-ए-तर्क-ए-नज़्ज़ारा
हज़ार बार मगर देखना पड़ा मुझ को

मुईन अहसन जज़्बी




हमीं हैं सोज़ हमीं साज़ हैं हमीं नग़्मा
ज़रा सँभल के सर-ए-बज़्म छेड़ना हम को

मुईन अहसन जज़्बी




दिल-ए-नाकाम थक के बैठ गया
जब नज़र आई मंज़िल-ए-मक़्सूद

मुईन अहसन जज़्बी