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ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी शायरी | शाही शायरी

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी शेर

65 शेर

देखा जिसे बिस्मिल क्या ताका जिसे मारा
उस आँख से डरिए जो ख़ुदा से न डरे आँख

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




देखना हसरत-ए-दीदार इसे कहते हैं
फिर गया मुँह तिरी जानिब दम-ए-मुर्दन अपना

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




एक को दो कर दिखाए आइना
गर बनाएँ आहन-ए-शमशीर से

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




ग़ज़ब है रूह से इस जामा-ए-तन का जुदा होना
लिबास-ए-तंग है उतरेगा आख़िर धज्जियाँ हो कर

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




आएँगे वक़्त-ए-ख़िज़ाँ छोड़ दे आई है बहार
ले ले सय्याद क़सम रख दे गुलिस्ताँ सर पर

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




हाथ दिखला के ये बोला वो मुसलमाँ-ज़ादा
हो गया दस्त-ए-निगर अब तो बरहमन अपना

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




है चश्म नीम-बाज़ अजब ख़्वाब-ए-नाज़ है
फ़ित्ना तो सो रहा है दर-ए-फ़ित्ना बाज़ है

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




है साया चाँदनी और चाँद मुखड़ा
दुपट्टा आसमान-ए-आसमाँ है

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




हिज्र में इक माह के आँसू हमारे गिर पड़े
आसमाँ टूटा शब-ए-फ़ुर्क़त सितारे गिर पड़े

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी