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ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी शायरी | शाही शायरी

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी शेर

65 शेर

वो ज़ख़्म लगा है कि दिखाई नहीं देता
दरकार हुआ मरहम-ए-नायाब का फाहा

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




याद-ए-मिज़्गाँ में मिरी आँख लगी जाती है
लोग सच कहते हैं सूली पे भी नींद आती है

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




यार तन्हा घर में है अफ़्सोस लेकिन हम नहीं
हूर तो है गुलशन-ए-फ़िरदौस में आदम नहीं

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




ये दिल-ए-बद-गुमाँ न देख सके
अगर उस बुत के हो ख़ुदा हमराह

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




ज़मीं भी निकली जाती है मिरी पाँव के नीचे से
मुझे मुश्किल हुआ है साथ देना अपने मंज़िल का

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




ज़र दिया ज़ोर दिया माल दिया गंज दिए
ऐ फ़लक कौन से राहत के एवज़ रंज दिए

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




हाल पूछो न मिरे रोने का बस जाने दो
अभी रूमाल निचोड़ूँगा तो तूफ़ाँ होगा

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




आया है मिरे दिल का ग़ुबार आँसुओं के साथ
लो अब तो हुई मालिक-ए-ख़ुश्की-ओ-तरी आँख

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी




ऐ बुतो दर-पर्दा तुम से ज़ाहिदों को भी है इश्क़
सूरत-ए-तस्बीह पिन्हाँ रखते हैं ज़ुन्नार को

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी