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ख़लील-उर-रहमान आज़मी शायरी | शाही शायरी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी शेर

54 शेर

हम ने तो ख़ुद को भी मिटा डाला
तुम ने तो सिर्फ़ बेवफ़ाई की

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




आरिज़ पे तेरे मेरी मोहब्बत की सुर्ख़ियाँ
मेरी जबीं पे तेरी वफ़ा का ग़ुरूर है

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




अब उन बीते दिनों को सोच कर तो ऐसा लगता है
कि ख़ुद अपनी मोहब्बत जैसे इक झूटी कहानी हो

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




और तो कोई बताता नहीं उस शहर का हाल
इश्तिहारात ही दीवार के पढ़ कर देखें

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




अज़ल से था वो हमारे वजूद का हिस्सा
वो एक शख़्स कि जो हम पे मेहरबान हुआ

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




बने-बनाए से रस्तों का सिलसिला निकला
नया सफ़र भी बहुत ही गुरेज़-पा निकला

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




भला हुआ कि कोई और मिल गया तुम सा
वगर्ना हम भी किसी दिन तुम्हें भुला देते

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




दुनिया भर की राम-कहानी किस किस ढंग से कह डाली
अपनी कहने जब बैठे तो एक एक लफ़्ज़ पिघलता था

ख़लील-उर-रहमान आज़मी