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ख़लील-उर-रहमान आज़मी शायरी | शाही शायरी

ख़लील-उर-रहमान आज़मी शेर

54 शेर

यहीं पर दफ़्न कर दो इस गली से अब कहाँ जाऊँ
कि मेरे पास जो कुछ था यहीं आ कर लुटाया है

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ये और बात कि तर्क-ए-वफ़ा पे माइल हैं
तिरी वफ़ा की हमें आज भी ज़रूरत है

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ये सच है आज भी है मुझे ज़िंदगी अज़ीज़
लेकिन जो तुम मिलो तो ये सौदा गिराँ नहीं

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ये तमन्ना नहीं अब दाद-ए-हुनर दे कोई
आ के मुझ को मिरे होने की ख़बर दे कोई

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




यूँ जी बहल गया है तिरी याद से मगर
तेरा ख़याल तेरे बराबर न हो सका

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




यूँ तो मरने के लिए ज़हर सभी पीते हैं
ज़िंदगी तेरे लिए ज़हर पिया है मैं ने

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ज़हर पी कर भी यहाँ किस को मिली ग़म से नजात
ख़त्म होता है कहीं सिलसिला-ए-रक़्स-ए-हयात

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ज़रा जो तेज़ चले तो कोई भी साथ न था
हिसार-ए-फ़िक्र ही बस अपना पासबान हुआ

ख़लील-उर-रहमान आज़मी




ज़िंदगी भी मिरे नालों की शनासा निकली
दिल जो टूटा तो मिरे घर में कोई शम्अ जली

ख़लील-उर-रहमान आज़मी