मोहब्बत की तो कोई हद, कोई सरहद नहीं होती
हमारे दरमियाँ ये फ़ासले, कैसे निकल आए
ख़ालिद मोईन
मुन्कशिफ़! आज तलक हो न सका
मैं ख़ला हूँ कि ख़ला है मुझ में
ख़ालिद मोईन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
सदाएँ डूब जाती हैं हवा के शोर में और मैं
गली-कूचों में तन्हा चीख़ता रहता हूँ बारिश में
ख़ालिद मोईन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |
शाम पड़े सो जाने वाला! दीप बुझा कर यादों के
रात गए तक जाग रहा था पहली पहली बारिश में
ख़ालिद मोईन
टैग:
| 2 लाइन शायरी |