रक़्स किया कभी शोर मचाया पहली पहली बारिश में
मैं था मेरा पागल-पन था पहली पहली बारिश में
पैहम दस्तक पर बूँदों की आख़िर उस ने ध्यान दिया
खुल गया धीरे धीरे दरीचा पहली पहली बारिश में
एक अकेला मैं ही घर में ख़ौफ़-ज़दा सा बैठा था
वर्ना शहर तो भीग रहा था पहली पहली बारिश में
आने वाले सब्ज़ दिनों की सब शादाबी, उस से है
आँखों ने जो मंज़र देखा पहली पहली बारिश में
शाम पड़े सो जाने वाला! दीप बुझा कर यादों के
रात गए तक जाग रहा था पहली पहली बारिश में
जाने क्या क्या ख़्वाब बुने थे, पहले सावन में, मैं ने
जाने इस पर क्या क्या लिक्खा पहली पहली बारिश में
ग़ज़ल
रक़्स किया कभी शोर मचाया पहली पहली बारिश में
ख़ालिद मोईन