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जावेद नसीमी शायरी | शाही शायरी

जावेद नसीमी शेर

15 शेर

बे-साया न हो जाए कहीं घर मिरा यारब
कुछ दिन से मैं झुकता ये शजर देख रहा हूँ

जावेद नसीमी




चाँद का क़ुर्ब लगा कैसा चलो पूछ आएँ
आसमानों के सफ़र से वो पलट आया है

जावेद नसीमी




दर-ब-दर हो गए ताबीर की धुन में कितने
इन हसीं ख़्वाबों से बढ़ कर कोई सफ़्फ़ाक नहीं

जावेद नसीमी




देखना छोड़े नहीं ख़्वाब मिरी आँखों ने
पूरा हर-चंद कोई ख़्वाब नहीं हो पाया

जावेद नसीमी




एक चेहरा है जो आँखों में बसा रहता है
इक तसव्वुर है जो तन्हा नहीं होने देता

जावेद नसीमी




गिरने वाला है मिरा बोझ सँभाले कोई
अपने आँसू मिरी पलकों से उठा ले कोई

जावेद नसीमी




जिसे न आने की क़स्में मैं दे के आया हूँ
उसी के क़दमों की आहट का इंतिज़ार भी है

जावेद नसीमी




मिट जाने के आसार विरासत में मिले हैं
गिरते दर-ओ-दीवार विरासत में मिले हैं

जावेद नसीमी




मुद्दत हुई कि ज़िंदा हूँ देखे बग़ैर उसे
वो शख़्स मेरे दिल से उतर तो नहीं गया

जावेद नसीमी