अब तो कर डालिए वफ़ा उस को
वो जो वादा उधार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती
दिल की बातों को दिल समझता है
दिल की बोली अजीब बोली है
इब्न-ए-मुफ़्ती
दिल में सज्दे किया करो 'मुफ़्ती'
इस में पर्वरदिगार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती
हम से शायद मो'तबर ठहरी सबा
जिस ने ये गेसू सँवारे आप के
इब्न-ए-मुफ़्ती
इक ज़रा सी बात पे ये मुँह बनाना रूठना
इस तरह तो कोई अपनों से ख़फ़ा होता नहीं
इब्न-ए-मुफ़्ती
जिन पे नाज़ाँ थे ये ज़मीन ओ फ़लक
अब कहाँ हैं वो सूरतें बाक़ी
इब्न-ए-मुफ़्ती
कैसा जादू है समझ आता नहीं
नींद मेरी ख़्वाब सारे आप के
इब्न-ए-मुफ़्ती
कर बुरा तो भला नहीं होता
कर भला तो बुरा नहीं होता
इब्न-ए-मुफ़्ती
फिर से वो लौट कर नहीं आया
फिर दुआ में असर नहीं आया
इब्न-ए-मुफ़्ती