तेरे ख़्वाबों की लत लगी जब से
रात का इंतिज़ार रहता है
इब्न-ए-मुफ़्ती
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याद का क्या है आ गई फिर से
आँख का क्या है फिर से रो ली है
इब्न-ए-मुफ़्ती
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ये कारोबार भी कब रास आया
ख़सारे में रहे हम प्यार कर के
इब्न-ए-मुफ़्ती
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यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं
कोई तुम सा नज़र नहीं आया
इब्न-ए-मुफ़्ती
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