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फिर से वो लौट कर नहीं आया | शाही शायरी
phir se wo lauT kar nahin aaya

ग़ज़ल

फिर से वो लौट कर नहीं आया

इब्न-ए-मुफ़्ती

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फिर से वो लौट कर नहीं आया
फिर दुआ में असर नहीं आया

चैन आएगा कैसे आज की शब
तारे निकले, क़मर नहीं आया

लिखते देखा था ख़्वाब में उन को
अब तलक नामा-बर नहीं आया

मेरे मरने पे आया सारा जहाँ
जो था इक बा-ख़बर नहीं आया

चल बसी माँ लिए खुली आँखें
उस का, नूर-ए-नज़र नहीं आया

यूँ तो पत्थर बहुत से देखे हैं
कोई तुम सा नज़र नहीं आया

शाम ढलने लगी है अब 'मुफ़्ती'
सुब्ह का भूला घर नहीं आया