चमन में शब को जो वो शोख़ बे-नक़ाब आया
यक़ीन हो गया शबनम को आफ़्ताब आया
उन अँखड़ियों में अगर नश्शा-ए-शराब आया
सलाम झुक के करूँगा जो फिर हिजाब आया
किसी के महरम-ए-आब-ए-रवाँ की याद आई
हबाब के जो बराबर कभी हबाब आया
शब-ए-फ़िराक़ में मुझ को सुलाने आया था
जगाया मैं ने जो अफ़्साना-गो को ख़्वाब आया
अदम में हस्ती से जा कर यही कहूँगा मैं
हज़ार हसरत-ए-ज़िंदा को गाड़ दाब आया
चकोर हुस्न-ए-मह-ए-चार-दह को भूल गया
मुराद पर जो तिरा आलम-ए-शबाब आया
मोहब्बत-ए-मय-ओ-माशूक़ तर्क कर 'आतिश'
सफ़ेद बाल हुए मौसम-ए-ख़िज़ाब आया
ग़ज़ल
चमन में शब को जो वो शोख़ बे-नक़ाब आया
हैदर अली आतिश