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गुलज़ार शायरी | शाही शायरी

गुलज़ार शेर

49 शेर

अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा

गुलज़ार




आइना देख कर तसल्ली हुई
हम को इस घर में जानता है कोई

गुलज़ार




चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें

गुलज़ार




चूल्हे नहीं जलाए कि बस्ती ही जल गई
कुछ रोज़ हो गए हैं अब उठता नहीं धुआँ

गुलज़ार




देर से गूँजते हैं सन्नाटे
जैसे हम को पुकारता है कोई

गुलज़ार




दिल पर दस्तक देने कौन आ निकला है
किस की आहट सुनता हूँ वीराने में

गुलज़ार




दिन कुछ ऐसे गुज़ारता है कोई
जैसे एहसाँ उतारता है कोई

गुलज़ार




एक ही ख़्वाब ने सारी रात जगाया है
मैं ने हर करवट सोने की कोशिश की

गुलज़ार




एक सन्नाटा दबे-पाँव गया हो जैसे
दिल से इक ख़ौफ़ सा गुज़रा है बिछड़ जाने का

गुलज़ार