आँखों से आँसुओं के मरासिम पुराने हैं
मेहमाँ ये घर में आएँ तो चुभता नहीं धुआँ
गुलज़ार
आदतन तुम ने कर दिए वादे
आदतन हम ने ए'तिबार किया
गुलज़ार
आग में क्या क्या जला है शब भर
कितनी ख़ुश-रंग दिखाई दी है
गुलज़ार
आप के बा'द हर घड़ी हम ने
आप के साथ ही गुज़ारी है
गुलज़ार
आप ने औरों से कहा सब कुछ
हम से भी कुछ कभी कहीं कहते
गुलज़ार
अपने माज़ी की जुस्तुजू में बहार
पीले पत्ते तलाश करती है
गुलज़ार
अपने साए से चौंक जाते हैं
उम्र गुज़री है इस क़दर तन्हा
गुलज़ार
भरे हैं रात के रेज़े कुछ ऐसे आँखों में
उजाला हो तो हम आँखें झपकते रहते हैं
गुलज़ार
चंद उम्मीदें निचोड़ी थीं तो आहें टपकीं
दिल को पिघलाएँ तो हो सकता है साँसें निकलें
गुलज़ार