सब्र हर बार इख़्तियार किया
हम से होता नहीं हज़ार किया
आदतन तुम ने कर दिए वा'दे
आदतन हम ने ए'तिबार किया
हम ने अक्सर तुम्हारी राहों में
रुक कर अपना ही इंतिज़ार किया
फिर न माँगेंगे ज़िंदगी या-रब
ये गुनह हम ने एक बार किया
ग़ज़ल
सब्र हर बार इख़्तियार किया
गुलज़ार