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फ़रियाद आज़र शायरी | शाही शायरी

फ़रियाद आज़र शेर

10 शेर

अदा हुआ न क़र्ज़ और वजूद ख़त्म हो गया
मैं ज़िंदगी का देते देते सूद ख़त्म हो गया

फ़रियाद आज़र




ऐसी ख़ुशियाँ तो किताबों में मिलेंगी शायद
ख़त्म अब घर का तसव्वुर है मकाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र




बंद हो जाता है कूज़े में कभी दरिया भी
और कभी क़तरा समुंदर में बदल जाता है

फ़रियाद आज़र




हम इब्तिदा ही में पहुँचे थे इंतिहा को कभी
अब इंतिहा में भी हैं इब्तिदा से लिपटे हुए

फ़रियाद आज़र




इस तमाशे का सबब वर्ना कहाँ बाक़ी है
अब भी कुछ लोग हैं ज़िंदा कि जहाँ बाक़ी है

फ़रियाद आज़र




जो दूर रह के उड़ाता रहा मज़ाक़ मिरा
क़रीब आया तो रोया गले लगा के मुझे

फ़रियाद आज़र




मैं अपनी रूह लिए दर-ब-दर भटकता रहा
बदन से दूर मुकम्मल वजूद था मेरा

फ़रियाद आज़र




मैं जिस में रह न सका जी-हुज़ूरियों के सबब
ये आदमी है उसी कामयाब मौसम का

फ़रियाद आज़र




मैं उस की बातों में ग़म अपना भूल जाता मगर
वो शख़्स रोने लगा ख़ुद हँसा हँसा के मुझे

फ़रियाद आज़र